अपने अन्दर डूब रहा हूँ
सच के मोती ढूंढ रहा हूँ
राम नाम की मदिरा पी
सांझ सकारे झूम रहा हूँ
रिश्ते नाते कागजी फूल
नकली खुशबू सूँघ रहा हूँ
जन्म औ मृत्यु का बंधन
लख लख योनी घूम रहा हूँ
तेरा औ मेरा के चक्कर मे
परम पिता को भूल रहा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
सच के मोती ढूंढ रहा हूँ
राम नाम की मदिरा पी
सांझ सकारे झूम रहा हूँ
रिश्ते नाते कागजी फूल
नकली खुशबू सूँघ रहा हूँ
जन्म औ मृत्यु का बंधन
लख लख योनी घूम रहा हूँ
तेरा औ मेरा के चक्कर मे
परम पिता को भूल रहा हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------
बेहतरीन रचना आदरणीय ..
ReplyDeletethnx Dil kee Aawaaz
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