आफताब से कुछ और नही माँगता हूँ
फक़त अपने हिस्से की धुप चाहता हूँ
शाम से ही शराबखाने मे बैठा ज़रूर हूँ
मगर पैमाने मे अपना ग़म ढालता हूँ
रात जब भी चांदनी बरसे है आँगन मे
वज़ूद पे खामोशी की चादर तानता हूँ
मुकेश राह जब से पकड़ी सच की हमने
हो गया हूँ अकेला कारवां में जानता हूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
फक़त अपने हिस्से की धुप चाहता हूँ
शाम से ही शराबखाने मे बैठा ज़रूर हूँ
मगर पैमाने मे अपना ग़म ढालता हूँ
रात जब भी चांदनी बरसे है आँगन मे
वज़ूद पे खामोशी की चादर तानता हूँ
मुकेश राह जब से पकड़ी सच की हमने
हो गया हूँ अकेला कारवां में जानता हूँ
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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