Pages

Saturday, 30 November 2013

लफ़्ज़ों को धारदार कर लूं

लफ़्ज़ों को धारदार कर लूं
कलम को तलवार कर लूं

चुनौतियों से घबराकर क्यूँ
दामन को दागदार कर लूं ?

सोच के दरीचों को खोलकर
अपना  दर हवादार  कर लूं

दिल मैला है तो क्या हुआ ?
पैरहन तो कलफदार कर लूं

मुकेश इलाहाबादी --------------

No comments:

Post a Comment