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Thursday, 23 January 2014

गर हवा के रुख पे बहे होते ?

गर हवा के रुख पे बहे होते ?
हम भी किनारे लग गए होते

गर दिल को फलक बनाया होता ?
तेरे आँचल में भी सितारे जड़े होते

गर एक भी बीज बोया होता ?
चमन में फूल ही फूल खिले होते

गर इतना मगरूर न हुए होते ?
तेरे दर पे भी आशिक़ खड़े होते

मुकेश इलाहाबादी ------------------

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