वक्त का तकाज़ा था
हमको चुप रहना था
तुम भी तो बदल गये
तुमको तो बोलना था
कब तक चराग लड्ता
ज़ोरे तूफान ज़्यादा था
वज़ह दशहत गरदी थी
सड्कों पे सन्नाटा था
रात की तीरगी मे भी
उम्मीद का उज़ाला था
आफताब के चेहरे पे
गाढा काला धब्बा था
मुहब्बत की ज़ुस्त्ज़ूं मे
अपना भी कारवां था
रात आस्मां से जो टूटा
वो मासूम सितारा था
खुद् ग़रज़ों के शहर मे
मुकेश एक मशीहा था
मुकेश इलाहाबादी ---
हमको चुप रहना था
तुम भी तो बदल गये
तुमको तो बोलना था
कब तक चराग लड्ता
ज़ोरे तूफान ज़्यादा था
वज़ह दशहत गरदी थी
सड्कों पे सन्नाटा था
रात की तीरगी मे भी
उम्मीद का उज़ाला था
आफताब के चेहरे पे
गाढा काला धब्बा था
मुहब्बत की ज़ुस्त्ज़ूं मे
अपना भी कारवां था
रात आस्मां से जो टूटा
वो मासूम सितारा था
खुद् ग़रज़ों के शहर मे
मुकेश एक मशीहा था
मुकेश इलाहाबादी ---
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