सुबह से ज़िंदगी उदासी लिए बैठी है
मौसमे वस्ल की इंतज़ारी लिए बैठी है
शब् भर चराग संग संग खुद भी जली
रात जागी आँखें खुमारी लिए बैठी है
हुस्न और मासूमियत की सजा पाकर
अँधेरे में अपनी बेगुनाही लिए बैठी है
भूल गया सूरज जिसे दिल में उगाया
याद में वो रात अंधियारी लिए बैठी है
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
मौसमे वस्ल की इंतज़ारी लिए बैठी है
शब् भर चराग संग संग खुद भी जली
रात जागी आँखें खुमारी लिए बैठी है
हुस्न और मासूमियत की सजा पाकर
अँधेरे में अपनी बेगुनाही लिए बैठी है
भूल गया सूरज जिसे दिल में उगाया
याद में वो रात अंधियारी लिए बैठी है
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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