कोई ज़रूरी तो नहीं,
नाचघर जाया जाए
हो रहा शहर में तमाशा
चलो आओ देखा जाए
साधे पाँव संग भूखे पेट,
रस्सी पे नाचती लड़की
देख थरथराती छातियाँ
चंद सिक्के उछाला जाए
हूत तू तू सब बोल रहे
खेल कबड्डी खेल रहे
चुनाव अखाड़ा खुल गया
चल सत्ता दंगल देखा जाए
है सरे आम बाल बिखेरे
देखो महंगाई झूम रही
औ नेता बन के नाच रहे
भालू - बन्दर देखा जाए
मुकेश इलाहाबादी -----
नाचघर जाया जाए
हो रहा शहर में तमाशा
चलो आओ देखा जाए
साधे पाँव संग भूखे पेट,
रस्सी पे नाचती लड़की
देख थरथराती छातियाँ
चंद सिक्के उछाला जाए
हूत तू तू सब बोल रहे
खेल कबड्डी खेल रहे
चुनाव अखाड़ा खुल गया
चल सत्ता दंगल देखा जाए
है सरे आम बाल बिखेरे
देखो महंगाई झूम रही
औ नेता बन के नाच रहे
भालू - बन्दर देखा जाए
मुकेश इलाहाबादी -----
No comments:
Post a Comment