राह में हमारी कोई तरुवर नहीं है
कोई साथी कोई हमसफ़र नहीं है
हूँ मुसाफिर जिसकी जुस्तज़ू में
मेरे आने की उसको खबर नहीं है
लोग हैं कि मैखाना लिए बैठे हैं,,
यंहा क़तरा ऐ मय मयस्सर नहीं
फ़क़त दश्त है सहरा है तंहाई है
हम फ़क़ीरों के लिए घर नहीं है
मुहब्बत ही मुहब्बत हो जंहा ??
ऐसा कोई गांव या शहर नहीं है
मुकेश इलाहाबादी ---------------
कोई साथी कोई हमसफ़र नहीं है
हूँ मुसाफिर जिसकी जुस्तज़ू में
मेरे आने की उसको खबर नहीं है
लोग हैं कि मैखाना लिए बैठे हैं,,
यंहा क़तरा ऐ मय मयस्सर नहीं
फ़क़त दश्त है सहरा है तंहाई है
हम फ़क़ीरों के लिए घर नहीं है
मुहब्बत ही मुहब्बत हो जंहा ??
ऐसा कोई गांव या शहर नहीं है
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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