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Sunday, 9 February 2014

तन में इत्र लगाए बैठे हैं

तन में इत्र लगाए बैठे हैं
मन मे मैल लिए बैठे हैं
हाथो में गुलाब दिले में
जनाब बबूल उगाए बैठे हैं
हर अदा जिनकी क़ातिल
चेहरा मासूम लिए बैठे हैं
सैकड़ों क़त्ल करके भी
निगाहें मासूम लिए बैठे हैं
दिले दौलत लिए फिरते थे
वही दौलत लुटाए बैठे हैं

मुकेश इलाहाबादी -------

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