है ज़माने का दस्तूर चेहरे कई रखता हूँ
ख़ुदा कसम दिल मगर एक ही रखता हूँ
ये अलग बात कि मुहब्बत में झुक जाऊं
तबियत में अपनी मगर खुद्दारी रखता हूँ
मुकेश यूँ तो कई चेहरे हँसी पसंद हैं हमें
जेब में तस्वीर मैँ तुम्हारी ही रखता हूँ ,,
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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