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Monday, 19 May 2014

है ज़माने का दस्तूर चेहरे कई रखता हूँ


है ज़माने का दस्तूर चेहरे कई रखता हूँ
ख़ुदा कसम दिल मगर एक ही रखता हूँ

ये अलग बात कि मुहब्बत में झुक जाऊं
तबियत में अपनी मगर खुद्दारी रखता हूँ

मुकेश यूँ तो कई चेहरे हँसी पसंद हैं हमें
जेब में तस्वीर मैँ तुम्हारी ही रखता हूँ ,,

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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