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Thursday, 8 May 2014

तुम्हारा ही सहारा था

तुम्हारा ही सहारा था
वरना कौन हमारा था

बस्ती लुट गयी कबकी
अपना जंहा ठिकाना था

सूरज को गौर से देखा
बड़ा सा काला धब्बा था

तुनक मिज़ाज चाँद का
शाम से ही मुँह टेढ़ा था

गुलाब की गोदी मे इक
काला भंवरा  बैठा था

धुप सिर पे नाचती थी
मै मुँह  ढककर सोता था 

तुम आ जाओ इक दिन
ढेरों दुख- सुख कहना था 

मुकेश इलाहाबादी ----------

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