तुम्हारा ही सहारा था
वरना कौन हमारा था
बस्ती लुट गयी कबकी
अपना जंहा ठिकाना था
सूरज को गौर से देखा
बड़ा सा काला धब्बा था
तुनक मिज़ाज चाँद का
शाम से ही मुँह टेढ़ा था
गुलाब की गोदी मे इक
काला भंवरा बैठा था
धुप सिर पे नाचती थी
मै मुँह ढककर सोता था
तुम आ जाओ इक दिन
ढेरों दुख- सुख कहना था
मुकेश इलाहाबादी ----------
वरना कौन हमारा था
बस्ती लुट गयी कबकी
अपना जंहा ठिकाना था
सूरज को गौर से देखा
बड़ा सा काला धब्बा था
तुनक मिज़ाज चाँद का
शाम से ही मुँह टेढ़ा था
गुलाब की गोदी मे इक
काला भंवरा बैठा था
धुप सिर पे नाचती थी
मै मुँह ढककर सोता था
तुम आ जाओ इक दिन
ढेरों दुख- सुख कहना था
मुकेश इलाहाबादी ----------
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