तुम,
इस खामोशी से
यह मत समझो
हमें कुछ कहना नहीं
दर असल, जब कभी तुम
अनसुनी कर देते हो
बात, तब सारे के सारे शब्द
उतर जाते हैं
एक गहन गह्वर में
और वंहा से
फिर कभी लौट कर नहीं आते
हमारे शब्द
लिहाज़ा
तुम्हे सीख लेना चाहिए
इस खामोशी को भी
समझने का हुनर
वर्ना , तुम वंचित रह जाओगे
हमसे गुफ्तगू करने के लिए
हमेषा हमेषा के लिए
तुम,
खामोश दरिया को भी देखकर
मत समझना इसे कुछ कहना नही
दर असल यह भी
अपनी आरज़ूओं को लेकर
इतना मचल चुका है कि
कुछ कहने से बेहतर, इसे
चुपचाप बहना अच्छा लगता है
लिहाज़ा तुम भी इसके साथ
गुप चुप बहना सीख लो
वर्ना चुप रहना ही बेहतर होगा
हमारे लिए तुम्हारे लिए
मुकेश इलाहाबादी ---------
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