रश्मे उल्फत मै निभाऊं कैसे
है पाँव में मेहंदी तेरे दर आऊँ कैसे
इज़हार कर तो दूँ निगाहों से
हया का बोझ है पलकें उठाऊं कैसे
आ तो जाऊं किसी बहाने से
लौट के मै पीहर घर जाऊं कैसे
सखियाँ छेड़े हैं तेरे नाम से पहले भी
बातें दिल की मै सुनाऊँ कैसे
जले है दिल मेरा इक ज़माने से
हिज़्र की आग को बुझाऊं मै कैसे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
है पाँव में मेहंदी तेरे दर आऊँ कैसे
इज़हार कर तो दूँ निगाहों से
हया का बोझ है पलकें उठाऊं कैसे
आ तो जाऊं किसी बहाने से
लौट के मै पीहर घर जाऊं कैसे
सखियाँ छेड़े हैं तेरे नाम से पहले भी
बातें दिल की मै सुनाऊँ कैसे
जले है दिल मेरा इक ज़माने से
हिज़्र की आग को बुझाऊं मै कैसे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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