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Saturday, 24 May 2014

रश्मे उल्फत मै निभाऊं कैसे

रश्मे उल्फत मै निभाऊं कैसे
है पाँव में मेहंदी तेरे दर आऊँ कैसे

इज़हार कर तो दूँ निगाहों से
हया का बोझ है पलकें उठाऊं कैसे

आ तो जाऊं किसी बहाने से
लौट के मै पीहर घर जाऊं कैसे

सखियाँ छेड़े हैं तेरे नाम से पहले भी
बातें दिल की मै सुनाऊँ कैसे

जले है दिल मेरा इक ज़माने से
हिज़्र की आग को बुझाऊं मै कैसे

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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