अब जात कुजात का हम जानी
मानुष हौं मानुष की भाषा जानीं
ई ठाकुर ऊ बाम्हन तुम मल्ला
बस इ है ककहरा हम ना जानी
ई आलिम-फ़ाज़िल होइहैं कोई
बांचै प्रेम का पत्रा पंड़ित जानी
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
मानुष हौं मानुष की भाषा जानीं
ई ठाकुर ऊ बाम्हन तुम मल्ला
बस इ है ककहरा हम ना जानी
ई आलिम-फ़ाज़िल होइहैं कोई
बांचै प्रेम का पत्रा पंड़ित जानी
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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