लो फिर वो आ गया
बुझे चराग़ जला गया
बुझी -बुझी आखों में
फिर से नूर आ गया
तपते माह में फिर
बादल बन छा गया
कुछ देर को ही सही
गीत प्रेम का गा गया
आशिक़ आवारा सही
दिल को मेरे भा गया
मुकेश इलाहाबादी ----
बुझे चराग़ जला गया
बुझी -बुझी आखों में
फिर से नूर आ गया
तपते माह में फिर
बादल बन छा गया
कुछ देर को ही सही
गीत प्रेम का गा गया
आशिक़ आवारा सही
दिल को मेरे भा गया
मुकेश इलाहाबादी ----
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