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Friday, 9 May 2014

तुम्हे क्या मालूम नदी मे भी आग होती है


तुम्हे क्या मालूम नदी मे भी आग होती है 
बुझाकर प्यास औरों की खुद सुलगती है  

साँझ होते - होते  किनारे सो जाते हैँ
साहिल क्या जानें नदी दिन - रात बहती है

कभी सहरा कभी जंगळ कभी बस्ती
नदी जाने किस- किस राह गुज़रती है

सैकड़ों नदियां हैं समंदर क़ी बाहों मे
फिर भी नदी उसी की आस मे बहती है

है मुकेश मीलों तक फैला रेत का मंजर
जाने क्यूँ हर नदी मुझसे दूर बहती है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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