आसमाँ से बड़ी है
ख्वाब की नदी है
हम - तुम वही हैं
ज़माना भी वही है
बीच में मगर यह
दीवार क्यूँ खड़ी है
दरम्याँ दो रूहों के
हवस हंस रही है
हिज़्र के चार पल
सदियों से बड़ी है
साहिलों के बीच
नदी बह रही है
मुकेश इलाहाबादी -
ख्वाब की नदी है
हम - तुम वही हैं
ज़माना भी वही है
बीच में मगर यह
दीवार क्यूँ खड़ी है
दरम्याँ दो रूहों के
हवस हंस रही है
हिज़्र के चार पल
सदियों से बड़ी है
साहिलों के बीच
नदी बह रही है
मुकेश इलाहाबादी -
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