जब चराग़े रूह जगमगाता है
अन्धेरा मीलों दूर हो जाता है
दिनभर की उदासी खो जाती है
बच्चा जब गोद में मुस्कुराता है
जब पाकीज़गी दिल में होती है
तब खुदा अपना नूर बरसाता है
इंसान बड़ा मग़रूर होता है,उसकी
जब जेब में सिक्का खनखनाता है
ये नीली झील है दर्पन ज़मीन का
रात जिसमे चाँद झिलमिलाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
अन्धेरा मीलों दूर हो जाता है
दिनभर की उदासी खो जाती है
बच्चा जब गोद में मुस्कुराता है
जब पाकीज़गी दिल में होती है
तब खुदा अपना नूर बरसाता है
इंसान बड़ा मग़रूर होता है,उसकी
जब जेब में सिक्का खनखनाता है
ये नीली झील है दर्पन ज़मीन का
रात जिसमे चाँद झिलमिलाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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