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Friday, 27 June 2014

सुबहो शाम बदल दूँ क्या

सुबहो शाम बदल दूँ क्या
सूरज-चाँद बदल दूँ क्या

तू है लागे मस्त शराब सी  
अपना जाम बदल दूँ क्या

तू मुझको अपना सा लागे
अपना राम बदल दूँ क्या

चंद सिक्कों की खातिर मै
दीनो-ईमान बदल दूँ क्या

मै कँही और चला जाऊं ?
ये दरो-बाम बदल दूँ क्या

मुकेश इलाहाबादी ------

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