सिर्फ घर और ऑफिस के बीच की दूरी रह गयी होती
ख्वाब न होते तो ये ज़िंदगी कितनी सिमट गयी होती
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------
ख्वाब न होते तो ये ज़िंदगी कितनी सिमट गयी होती
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------
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