दिन नया खबर पुरानी है
वही लूट घसोट रहजनी है
तूफान मे शज़र गिर गये
दूब अपनी जगह तनी है
देखो धन दौलत के वास्ते
भाई - भाई मे ही ठनी है
सांझ की उतरती हुई धूप
बरामदे मे लेटी अन्मनी है
मुकेश झूठ और फरेब में
उंगलियाँ सब की सनी है
मुकेश इलाहाबादी --------
वही लूट घसोट रहजनी है
तूफान मे शज़र गिर गये
दूब अपनी जगह तनी है
देखो धन दौलत के वास्ते
भाई - भाई मे ही ठनी है
सांझ की उतरती हुई धूप
बरामदे मे लेटी अन्मनी है
मुकेश झूठ और फरेब में
उंगलियाँ सब की सनी है
मुकेश इलाहाबादी --------
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