अंधेरे मे भी झिलमिलाती है
ज़िंदगी अब भी मुस्कुराती है
दिन तो आवारा हो गया पर
सांझ तेरी याद कुनमुनाती है
तू लगती है गुलशन गुलशन
ख्वाहिशें पंख फड़फड़ाती हैं !
हवेली खंडहर हो गयी मगर
कोयल आज भी गा जाती है
तुम कुछ नही बोलती हो पर
तेरी आँख चुगली कर जाती है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
ज़िंदगी अब भी मुस्कुराती है
दिन तो आवारा हो गया पर
सांझ तेरी याद कुनमुनाती है
तू लगती है गुलशन गुलशन
ख्वाहिशें पंख फड़फड़ाती हैं !
हवेली खंडहर हो गयी मगर
कोयल आज भी गा जाती है
तुम कुछ नही बोलती हो पर
तेरी आँख चुगली कर जाती है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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