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Friday, 11 July 2014

इज़हारे मुहब्बत को सिर्फ इक मुस्कान काफी है

इज़हारे मुहब्बत को सिर्फ इक मुस्कान काफी है
वरना लिखते रहिये ख़त सुबहो शाम ना काफ़ी है
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

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