आखों में कुछ शोले, दिल में तूफ़ान डाल दो
लहू बन गया है आब , थोड़ा तेज़ाब डाल दो
ज़िंदगी के नाम पे, अपनी सलीब ढो रहे हैं
हो सके तो इन मुर्दों में, थोड़ी जान डाल दो
इन बुझी - बुझी आखों में रेगिस्तान रवाँ है
समंदर या दरिया न सही इक नहर डाल दो
लोग हाथ मिलाते हैं पर बड़े सर्द लहज़े से
शर्द होते रिश्तों में थोड़ी तो आग डाल दो
मुकेश माना ज़माना है तेरी सूरत का मुरीद
कभी तो हम जैसों पर भी तो नज़र डाल दो
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
लहू बन गया है आब , थोड़ा तेज़ाब डाल दो
ज़िंदगी के नाम पे, अपनी सलीब ढो रहे हैं
हो सके तो इन मुर्दों में, थोड़ी जान डाल दो
इन बुझी - बुझी आखों में रेगिस्तान रवाँ है
समंदर या दरिया न सही इक नहर डाल दो
लोग हाथ मिलाते हैं पर बड़े सर्द लहज़े से
शर्द होते रिश्तों में थोड़ी तो आग डाल दो
मुकेश माना ज़माना है तेरी सूरत का मुरीद
कभी तो हम जैसों पर भी तो नज़र डाल दो
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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