हंसने की आदत है, हंसना चाहता हूँ
ग़मे दौराँ में भी मुस्कुराना चाहता हूँ
यूँ तो कहने के लिए कुछ भी नहीं है
फिर भी मै तुझसे मिलना चाहता हूँ
टूट के ज़र्रा ज़र्रा ख़ाक हो गया वज़ूद
अब तेरे दामन से लिपटना चाहता हूँ
तेरी रुसवाई हो शहर में मेरे नाम से
इसके पहले बस्ती छोड़ना चाहता हूँ
सूना है तुझे ग़ज़ल का शौक है दोस्त
तेरे लिए कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
ग़मे दौराँ में भी मुस्कुराना चाहता हूँ
यूँ तो कहने के लिए कुछ भी नहीं है
फिर भी मै तुझसे मिलना चाहता हूँ
टूट के ज़र्रा ज़र्रा ख़ाक हो गया वज़ूद
अब तेरे दामन से लिपटना चाहता हूँ
तेरी रुसवाई हो शहर में मेरे नाम से
इसके पहले बस्ती छोड़ना चाहता हूँ
सूना है तुझे ग़ज़ल का शौक है दोस्त
तेरे लिए कुछ गुनगुनाना चाहता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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