वो इतने तीर चला देता है
ज़ख्म भी मुस्कुरा देता है
इतना मासूम मत समझो
क़त्ल के निशाँ मिटा देता है
उसकी हंसने की आदत है
ग़म को यूँ ही उड़ा देता है
इंसां जब अपने पे आ जाए
क़ायनात भी हिला देता है
मुकेश आदत से चुप्पा है
हर बात पे मुस्कुरा देता है
मुकेश इलाहाबादी ----------
ज़ख्म भी मुस्कुरा देता है
इतना मासूम मत समझो
क़त्ल के निशाँ मिटा देता है
उसकी हंसने की आदत है
ग़म को यूँ ही उड़ा देता है
इंसां जब अपने पे आ जाए
क़ायनात भी हिला देता है
मुकेश आदत से चुप्पा है
हर बात पे मुस्कुरा देता है
मुकेश इलाहाबादी ----------
No comments:
Post a Comment