Pages

Tuesday, 8 July 2014

मैंने बहते हुए पानी पे अंजाम लिख दिया

मैंने बहते हुए पानी पे अंजाम लिख दिया
दरिया की रवानी पे तेरा नाम लिख दिया

मेरे लम्हे - लम्हे का हाल तुझे मिलता रहे
गुलशन के हर  फूल पे पैगाम लिख दिया

ख़ुदा और मुहब्बत में कुछ भी फर्क नहीं है
है इश्क़ की इबारत सुबहो शाम लिख दिया

मुहब्बत की इक पाक सी कहानी लिखी जाए
दुनिया ने तो इसे बहुत बदनाम लिख दिया

मुकेश तेरे घर का पता मुझे मालूम नहीं है
लिहाज़ा ख़त तुझे हमने गुमनाम लिख दिया

मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

No comments:

Post a Comment