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Monday, 21 July 2014

सूख रहा पोखर और नदियों का आब



सूख रहा पोखर और नदियों का आब
बचा नहीं अब तो आखों का भी आब
सारे काट के जंगल और तोड़ के पहाड़
मूरख मानव मांग रहा बादल से आब

मुकेश इलाहाबादी -----------------------


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