Pages

Saturday, 16 August 2014

दिन का चैन रातों की नींद चुराने वाले

दिन का चैन रातों की नींद चुराने वाले
दर्दे दिल क्या जानेंगे दिल दुखाने वाले
 

हंसने मुस्कुराने की बात कौन करता है
बज़्म में बैठे हैं सभी रोने - रुलाने वाले
 

है बादशाहियत रंवा हमारी रग -रग में
हम वो आशिक़ नहीं,नखरे उठाने वाले  
 

यूँ तो महफ़िल में होंगे बहुत सुख़नवर
न होंगे वहाँ कोई हम जैसा सुनाने वाले
 

मुकेश रहा आया है अब - तक शान से
कब  के मर-खप गए हमें झुकाने वाले

मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment