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Wednesday, 6 August 2014

जाने किस बात की सज़ा पा रहा हूँ

जाने किस बात की सज़ा पा रहा हूँ
राह ऐ  ज़िदंगी में तनहा जा रहा हूँ

निकले थे तेरे घर की ज़ानिब मगर
ऎ दोस्त ! ये कंहा से कंहा जा रहा हूँ

दिले जज़्बात का दरिया लिए हुए
रौ में मै अपनी ही बहा जा रहा हूँ

तुम तक मेरी आवाज़ न पहुंचेगी
फिर भी तुम्हे पुकारे जा रहा हूँ

हर शख्श अपनी  धुन में मस्त है
और  मै अपनी ग़ज़ल गा रहा हूँ

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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