इक किताब लिखूं, सिर्फ तेरा नाम लिखूं
तेरी हंसी सुबह औ ज़ुल्फ़ को शाम लिखूं
ये जो खिलता हुआ लाल गुलाब है, और
महकता हुआ चमन मै तेरे नाम लिखूं
इस फ़क़ीर के पास कोई जागीर तो नहीं
दिले दौलत औ सब कुछ तेरे नाम लिखूं
जानता हूँ तेरा जवाब हरगिज़ न आएगा
अपनी तसल्ली के लिए रोज़ पैगाम लिखूं
कंही मेरे नाम से तेरी रुसवाई न हो जाए
मुकेश तेरे नाम की ग़ज़ल गुमनाम लिखूं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
तेरी हंसी सुबह औ ज़ुल्फ़ को शाम लिखूं
ये जो खिलता हुआ लाल गुलाब है, और
महकता हुआ चमन मै तेरे नाम लिखूं
इस फ़क़ीर के पास कोई जागीर तो नहीं
दिले दौलत औ सब कुछ तेरे नाम लिखूं
जानता हूँ तेरा जवाब हरगिज़ न आएगा
अपनी तसल्ली के लिए रोज़ पैगाम लिखूं
कंही मेरे नाम से तेरी रुसवाई न हो जाए
मुकेश तेरे नाम की ग़ज़ल गुमनाम लिखूं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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