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Friday, 8 August 2014

इक किताब लिखूं, सिर्फ तेरा नाम लिखूं

इक किताब लिखूं, सिर्फ तेरा नाम लिखूं
तेरी हंसी सुबह औ ज़ुल्फ़ को शाम लिखूं

ये जो खिलता हुआ लाल गुलाब है, और
महकता हुआ चमन मै तेरे नाम लिखूं

इस फ़क़ीर के पास कोई जागीर तो नहीं
दिले दौलत औ सब कुछ तेरे नाम लिखूं

जानता हूँ तेरा जवाब हरगिज़ न आएगा
अपनी तसल्ली के लिए रोज़ पैगाम लिखूं

कंही मेरे नाम से तेरी रुसवाई न हो जाए
मुकेश तेरे नाम की ग़ज़ल गुमनाम लिखूं

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

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