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Friday, 19 September 2014

हाँ, हम ज़िंदगी भर गुनाह करते रहे



हाँ, हम ज़िंदगी भर गुनाह करते रहे
हाँ - हाँ  मुहब्बत करते रहे करते रहे

कभी सहरा तो कभी दश्ते तीरगी रही
उम्र भर तो सफर करते रहे करते रहे

कभी रुसवाई तो कभी संगसारी मिली
ईश्क में हर ज़ुल्म सहते रहे सहते रहे

चाहता तो बहुत कुछ कह सकता था
पर हम चुपचाप सुनते रहे सुनते रहे

मुकेश हमें तो यही तरीका रास आया
दर्द कुछ तरह बयां करते रहे करते रहे

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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