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Saturday, 20 September 2014

अंधेरी रात लिए बैठे हैं



अंधेरी रात लिए बैठे हैं
चांद की आस लिए बैठे हैं
रातों को नींद नहीं आती
तेरा ही ख़ाब लिए बैठे हैं
ग़ज़ल पूरी नहीं हो रही
सिर्फ मत्ला लिए बैठे हैं
आओ  कोई गीत गायें
देर से साज़ लिए बैठे हैं
अपने  इस तनहा घर में
तुम्हारी याद लिए बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------

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