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Sunday, 14 September 2014

ताज़ा गुलाब सा खिले -२ लगते हो

ताज़ा गुलाब सा खिले -२ लगते हो
सुबह की ओस में नहाए  दिखते हो

तुम्हारे बदन में अजब सी खुशबू है
तुम भी चन्दन का बदन रखते हो

यूँ तो ज़माने में बहुत से लोग मिले
पर तुम मुझे सबसे अच्छे लगते हो

दोस्त किसी दिन मेरे घर तो आओ
और ये बताओ तुम कंहाँ रहते हो ?

मै मुहब्बत की ग़ज़ल कहता हूँ,क्या 
कभी तुम मेरी भी ग़ज़ल सुनते हो ?

मुकेश इलाहाबादी --------------------

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