दिल हवेली जिस्म गुम्बद है
अब तो यहां सिर्फ खंडहर है
फक्त घुप्प अन्धेरा मिलेगा
बाकी चमगादड़ व कबूतर हैं
जहां रौनक हुआ करती थी
वहाँ अब उदासी के मंज़र है
कभी हमारा भी ज़माना था
ये बात इतिहास में भी दर्ज़ है
मुद्दतों से कोई आया ही नहीं
मुकेश तो बीता हुआ कल है
मुकेश इलाहाबादी -----------
अब तो यहां सिर्फ खंडहर है
फक्त घुप्प अन्धेरा मिलेगा
बाकी चमगादड़ व कबूतर हैं
जहां रौनक हुआ करती थी
वहाँ अब उदासी के मंज़र है
कभी हमारा भी ज़माना था
ये बात इतिहास में भी दर्ज़ है
मुद्दतों से कोई आया ही नहीं
मुकेश तो बीता हुआ कल है
मुकेश इलाहाबादी -----------
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