परछियाँ उदास हैं मैदान में
धूप सो रही है सायबान में
धूप सो रही है सायबान में
दोपहर अपनी मस्ती में है
साँझ ऊंघ रही है दालान में
साँझ ऊंघ रही है दालान में
दिल का चैनो शुकूं ढूंढता हूँ
तेरी यादों के बियाबान में
शहर की आपाधापी से दूर
आ बैठा हूँ इस सूनसान में
आ बैठा हूँ इस सूनसान में
मुकेश आज के युग में तुम
सच्चाई ढूंढते हो इंसान में
मुकेश इलाहाबादी --------
सच्चाई ढूंढते हो इंसान में
मुकेश इलाहाबादी --------
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