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Tuesday, 16 December 2014

दोपहर से ढला लगता है

दोपहर से ढला लगता है
सूरज भी थका लगता है
जाने क्यों आज की रात
चाँद ग़मज़दा लगता है
इस ख़ौफ़ज़दा आलम में
हर कोई सहमा लगता है
इक तुम्हारी महफ़िल में
हमको अच्छा लगता है
दोस्तों में सिर्फ मुकेश
सबसे प्यारा लगता है

मुकेश इलाहाबादी ---

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