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Wednesday, 4 March 2015

तू हमको ही नहीं सबको हसीन लगती है

तू  हमको ही नहीं सबको हसीन लगती है
शहजादियाँ भी तेरे आगे कनीज़ लगती हैं

तू हँसे तो लगता है जैसे सारा ज़माना हँसे
ग़र तू चुप है तो दुनिया ग़मगीन लगती है

तेरी हंसी है चांदनी और,ज़ुल्फ़ें हैं बादल,कि
तू  समंदर के पानी सी नमकीन लगती है

तेरी तारीफ़ में अब इससे ज़्यादा क्या कहूँ
तू इन ज़हीनो में भी सबसे ज़हीन लगती है

इन आँखों की झील में झपकती हुई पलकें
मुकेश पानी में मचलती हुई मीन लगती है

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------


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