थपेड़े ही थपेड़े हैं, रेत् के घरौंदे हैं
जिस्म भीड़ में, मन से अकेले है
मुकेश है किसका दामन उजला ?
चाँद के जिस्म पे भी स्याह घेरे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------
जिस्म भीड़ में, मन से अकेले है
मुकेश है किसका दामन उजला ?
चाँद के जिस्म पे भी स्याह घेरे हैं
मुकेश इलाहाबादी -------
No comments:
Post a Comment