- बिखरा - बिखरा मंज़र और मै
उदास - उदास शहर और मै
इक लम्हे को भी आराम नही
भागता - दौड़ता शहर और मै
धूप - पानी , आंधी सह चुकी
उजड़ी - उजड़ी दीवार और मै
स्याह, जान लेवा शब के बाद
यह ज़र्द - ज़र्द सहर और मैँ
दूर -दूर तक कोई साहिल नहीं
यह हरहराता समंदर और मै
मुकेश इलाहाबादी -------------
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