दिल मे बेकली सी है
कहीं बिजली गिरी है
शब भर रोये हो क्या
इन ऑखों मे नमी है
दर्दो ग़म की गठरी से
पीठ व कमर झुकी है
दिल के बहुत नरम हो
यही तो तेेरी कमी है
मुकेश झुलस जाओगे,
ईश्क आग की नदी है
मुकेश इलाहाबादी --
कहीं बिजली गिरी है
शब भर रोये हो क्या
इन ऑखों मे नमी है
दर्दो ग़म की गठरी से
पीठ व कमर झुकी है
दिल के बहुत नरम हो
यही तो तेेरी कमी है
मुकेश झुलस जाओगे,
ईश्क आग की नदी है
मुकेश इलाहाबादी --
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