जब अंधेरा
लील चुका होता है
दिन को
और सब कुछ डूब चुका होता है
एक काली नदी मे
तब
खिडकी से चॉद
मुठठी भर
रोशनी फेंकता है मेरे कमरे मे
और मै मुस्कुरा देता हूं
मुकेश इलाहाबादी ......
लील चुका होता है
दिन को
और सब कुछ डूब चुका होता है
एक काली नदी मे
तब
खिडकी से चॉद
मुठठी भर
रोशनी फेंकता है मेरे कमरे मे
और मै मुस्कुरा देता हूं
मुकेश इलाहाबादी ......
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