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Sunday, 3 May 2015

दर बदर मै भटका बहुत

दर बदर मै भटका बहुत
उम्र भर रहा तन्हा बहुत

जिंदगी तेजाब की नदी
झुलसा, मगर तैरा बहुत

बचपन की सहेली जिसे
मिली नही पै ढूंढा बहुत

चॉद नदी मेे उतरा नही
दरिया ने मनाया बहुत 

मुकेश जैसा इसांन भी
फूट फूटकर रोया बहुत

मुकेश इलाहाबादी ...

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