एक मत्ला - दो शे 'र
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आग नहीं सिर्फ धुआं बाकी है
निशाँ कहर ऐ तूफाँ बाकी है
निशाँ कहर ऐ तूफाँ बाकी है
पनिहरिने अब नहीं आती हैं
पानी नहीं सिर्फ कुआँ बाकी है
पानी नहीं सिर्फ कुआँ बाकी है
यूँ तो ख़ाक में मिल चूका हूँ
बस खुद्दारी का गुमाँ बाकी है
बस खुद्दारी का गुमाँ बाकी है
मुकेश इलाहाबादी ------------
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