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Monday, 1 June 2015

रोशनी लापता थी

रोशनी  लापता थी
शाम  ग़मजदा थी

चॉद तो उगा था पर  
चॉदनी  बदगुमा थी

बादलों मे आग औ
तेजाब सी हवा थी

मीलों लम्बा रास्ता 
सर्द -सर्द  फिजा थी

और मै क्या कहूं ?
ज़िदगी   ख़फा  थी

मुकेश इलाहाबादी --

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