जब -जब भी तेरा ख़याल आता है
दिले दरिया में चाँद उतर आता है
तेरा मासूम चेहरा पाकीज़ा आँखें
तुझमे ख़ुदा का नूर नज़र आता है
अक्सरहां बर्फ सा जमा रहता हूँ
तेरा संग साथ पा, पिघल जाता हूँ
यूँ तो पत्थर बंधे हैं मेरे पाँव में
तेरा ईश्क है जो उड़ाए जाता है
तुझसे मिलने की जुस्तजूं है जो
मुकेश सफर में बढ़ाए जाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------
दिले दरिया में चाँद उतर आता है
तेरा मासूम चेहरा पाकीज़ा आँखें
तुझमे ख़ुदा का नूर नज़र आता है
अक्सरहां बर्फ सा जमा रहता हूँ
तेरा संग साथ पा, पिघल जाता हूँ
यूँ तो पत्थर बंधे हैं मेरे पाँव में
तेरा ईश्क है जो उड़ाए जाता है
तुझसे मिलने की जुस्तजूं है जो
मुकेश सफर में बढ़ाए जाता है
मुकेश इलाहाबादी -----------
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