एक
-------
बित्ता भर जमीन की खातिर
आंगन मे उठ गयी दीवारें
पिता और चाचा
सालों साल
चप्पल चटकाते चक्कर लगाते रहे
अदालत का,
खुद भूखे रह कर
पेट भरते रहे
वकीलों का
दलालों का
अदालत का
दो
-----
बात सिर्फ इत्ती सी थी
कोरी जात के लडके के साथ
बाम्हन की लडकी
आंख लडाते अमराई मे दिखी थी
लाठियां निकल आयीं
खून खच्चर हुआ
अब दोनो पार्टियां थाने मे बंद हैं
लडका - लडकी दोनो सहमे हुये हैं
अपनी जॉन के लिये डरे हुये हैं
तीन
-----
‘क’ बहुत खुश है
आज उसे पांच हजार मिले हैं
आज फिर उसने झूठी गवाही दी है
आज वह शाम को जी भर के दारु पियेगा
बेटे के लिये फुग्गा और
बीबी के लिये मलाई ले जायेगा
बिना यह सोचे हुये कि
उसकी झूठी गवाही से
एक गुनहगार
उम्र भर जेल काटेगा
या कि फांसी के फंदे पे झूल जायेगा
ये तो सिर्फ झांकी है।
उस समाज की जो हमे दिन रात
सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढाता रहता है।
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------
No comments:
Post a Comment