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Wednesday, 30 December 2015

जुएँ बीनती औरत



अक्सर
जब
थके बदन
कम हीमोग्लोबिन
वाली औरत
धूप में बैठ
दूसरी अपनी जैसी
औरत के बालों से
जूएँ बीन रही होती है
तब दरअसल वह
अपने दुःख बीन रही होती है 
ज़मीन पे रख के
अंगूठे पे तर्जनी के दबाव पे
अपना क्षोभ, गुस्सा और हताशा
जुएँ को मार के निकाल रही होती है

औरत जब दूसरी औरत के सिर से
जुएँ निकल कर मार रही होती है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

मौलिक और अप्रकाशित

जुएँ बीनती औरत

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