अक्सर
जब
थके बदन
कम हीमोग्लोबिन
वाली औरत
धूप में बैठ
दूसरी अपनी जैसी
औरत के बालों से
जूएँ बीन रही होती है
तब दरअसल वह
अपने दुःख बीन रही होती है
ज़मीन पे रख के
अंगूठे पे तर्जनी के दबाव पे
अपना क्षोभ, गुस्सा और हताशा
जुएँ को मार के निकाल रही होती है
औरत जब दूसरी औरत के सिर से
जुएँ निकल कर मार रही होती है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
मौलिक और अप्रकाशित
जुएँ बीनती औरत
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