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Tuesday, 8 December 2015

वो एक सुहानी सुबह थी

वो एक सुहानी सुबह थी तुम मिल गयी थी मंदिर जाते हुए मेरे पूछने पे 'तुम मंदिर क्यूँ जा रही हो? देवता तो तुम्हारे सामने है ' तुमने मुस्कुरा के अंजुरी के फूलों में से कुछ फूल तोड़ के मेरे ऊपर फेंका और इधर उधर देख कर किसी ने देखा तो नहीं भाग गयी थी झट से मंदिर के अहाते में दुपट्टे को सँभालते हुए और आँख बंद करके बुदबुदाने लगी थी कोई प्रार्थना कोई कामना पूरी होने की और मै तुम्हे देखता रहा देर तक तुम्हारी पूजा पूरी होने तक मुकेश इलाहाबादी --

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