जब भी
मेरे नथुनो से,
टकराती है
तुम्हारी
महुए सी देह गंध
सच, तब
मै और भी
बौरा जाता हूँ
और खो जाती है
तन मन की,
सुध - बुध
(सुमी से )
मुकेश इलाहाबादी ----
मेरे नथुनो से,
टकराती है
तुम्हारी
महुए सी देह गंध
सच, तब
मै और भी
बौरा जाता हूँ
और खो जाती है
तन मन की,
सुध - बुध
(सुमी से )
मुकेश इलाहाबादी ----
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